एम टेक की पढ़ाई फिर प्रतिष्ठित कंपनी की नौकरी छोड़ एक युवक ने प्लास्टिक का विकल्प तलाशना शुरू किया और अब मक्के के छिलके से उसने कप-प्लेट बनाया है। इसे वैज्ञानिको भी सराहा है ।
जूही राज की रिपोर्ट
मुजफ्फरपुर – सोच वैश्विक और प्रकृति से अपार प्रेम। विकराल होती प्लास्टिक समस्या से इतने चिंतित हुए कि सुनहरे कॅरियर को ठुकरा निकल पड़े विकल्प ढूंढऩे। एक ही संकल्प-कुछ करना है। गहन अध्ययन के बाद विकल्प के रूप में नजर आया मक्के का छिलका। फिर एक के बाद एक प्रयोग। ऐसे में सफलता मिलनी ही थी।
बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी मोहम्मद नाज ओजैर अब मक्के के छिलके से कप, प्लेट, पत्तल, कटोरी व झोला सफलतापूर्वक बना रहे। वे दो दर्जन स्कूलों में जाकर एक हजार बच्चों को यह तकनीक सिखा चुके हैं। मक्का वैज्ञानिक मानते हैं कि मक्के का छिलका प्लास्टिक का बेहतर विकल्प साबित हो सकता। यह सस्ता और उपयोगी भी है।

जिले के मनियारी क्षेत्र के मुरादपुर गांव निवासी 26 वर्षीय मोहम्मद नाज ओजैर इंटर के बाद आगे की पढ़ाई करने हैदराबाद चले गए। जवाहर लाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से वर्ष 2014 में बीटेक व 2016 में एमटेक किया। वहीं लेक्चरर के रूप में छह महीने काम किया।
कई कंपनियों से ऑफर मिले, लेकिन कुछ करने की सोच के साथ गांव वापस आ गए। प्लास्टिक का विकल्प प्रकृति में खोजने लगे। इसी दौरान देखा कि दाना निकालने के बाद छिलके को लोग यूं ही फेंक देते। इसी पर उन्होंने प्रयोग शुरू किया, जिसमें सफलता मिली।

छिलके के कप, प्लेट व पत्तल
मकई के छिलके को ऊपर और नीचे से एक-एक इंच काट देते। इससे यह तीन से चार इंच के चौड़े आकार में हो जाता। इसकी लंबाई छह इंच तक होती है। प्लेट बनाने में पांच से छह पत्ते लगते। पहले घर पर बनाई लेई से इसे चिपकाते, फिर प्लेट बनाने वाली डाई मशीन पर रखकर उसे आकार देने के साथ काट देते। इसी तरह प्लेट और कटोरी भी बनाते। एक पत्तल बनाने में तकरीबन 50 पैसे खर्च आता है। वाटरप्रूफ होने के चलते इसका प्लेट सब्जी के लिए उपयोगी है।
प्लास्टिक से दूर रहने की सलाह
अपने पिता शिक्षक मो. ओजैर अहमद के स्कूल में पढ़ा रहे नाज यह तकनीक स्कूलों में जाकर बच्चों को सिखाते हैं। प्लास्टिक से होने वाले नुकसान की चर्चा भी करते। नाज बच्चों को छिलके से तिरंगा तैयार करना भी बताते।
मकई के छिलके से बने कप का उपयोग चाय पीने के लिए किया जा सकता है। उनकी मानें तो प्लास्टिक के बढ़ते प्रभाव को प्राकृतिक चीजों से ही चुनौती दी जा सकती है। हालांकि, आर्थिक संकट के कारण वे इस प्रोजेक्ट को विस्तार नहीं दे पा रहे।
प्लास्टिक का विकल्प हो सकता मक्के का छिलका
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वरीय वैज्ञानिक (मक्का) डॉ. मृत्युंजय का कहना है कि मक्का का हर भाग उपयोगी है। इससे सैकड़ों प्रोडक्ट बनते हैं। इसके छिलके से पेपर, पेय पदार्थ, कंपोस्ट खाद, कलर, फ्लावर बेस और धागा तैयार होता है। इससे कप, प्लेट, पत्तल और झोला भी बनाया जा सकता है। यह प्लास्टिक का बेहतर विकल्प बन सकता। इस तरह के शोध होने चाहिए, ताकि लोगों को लाभ मिल सके।



