बिहार डेस्क
बिहार के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ० रमण कुमार वर्मा ने कहा है कि मोबाइल और कम्प्यूटर आधुनिक जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है और डिजिटल स्क्रीन का सामना करना लोगों की मजबूरी बन चुकी हैं। जिसके कारण लोग अनेको बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। डिजिटल स्क्रीन से निजात संभव नहीं है पर एहतियात बरतकर बीमार होने से बचा जा सकता है।
स्वयंसेवी संस्था डॉ० प्रभात दास फाउण्डेशन एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर जन्तु विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को आयोजित “स्क्रीन टाइम एंड विजन : यूसेज एंड चैलेन्जेज विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉक्टर वर्मा ने कहा कि कोरोना महामारी के समय से मोबाइल और कम्प्यूटर का प्रयोग बढ़ा है।

डिजिटल स्क्रीन के अधिक समय तक उपयोग करने से कम्प्यूटर सिंड्रोम, डिजिटल माईफोबिया आदि जैसी नई बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। उन्होंने बताया कि जिस तेजी से डिजिटल स्क्रीन का प्रयोग बढ़ा है वो अगर जारी रहता है तो भारत की आधी से अधिक आबादी 2050 तक आंखों की बीमारी से ग्रसित हो जाएगी। इसलिए लोगों को डिजिटल स्क्रीन विशेष तौर से मोबाइल के अत्यधिक प्रयोग से बचना चाहिए। बच्चों को मोबाइल से दूर रखने में ही भलाई है।चार-पांच साल के बच्चे को मोबाइल नहीं देना चाहिए इससे उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। डॉ वर्मा ने कहा कि जो डिजिटल स्क्रीन पर वर्क करते हैं।वे लगातार 20 मिनट कार्य करने के बाद कम से कम 20 सेकेंड का ब्रेक ले और डिजिटल स्क्रीन को आंखों से 20 इंच की दूरी पर रखे तो बहुत हद इसके दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। इसके साथ ही डॉ० वर्मा ने डिजिटल स्क्रीन प्रयोग के दरम्यान लगातार पलकों को झपकाने की भी सलाह दी।
विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद महिला प्रौद्योगिकी संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ० एम० नेहाल ने बताया कि आज की पीढ़ी सुबह से शाम तक डिजिटल स्क्रीन से चिपकी रहती हैं जो घातक प्रवृत्ति है। डिजिटल स्क्रीन से निकलने वाली नीली किरणें आंखों के लिए घातक है। इसके दुष्प्रभाव से बच्चों की आंखें तेजी से खराब हो रही हैं। इससे बचाव जरूरी है।जबकि सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए विज्ञान संकायाध्यक्ष एवं जन्तु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ० शिशिर कुमार वर्मा ने कहा कि डिजिटल स्क्रीन का प्रयोग आनेवाले समय में और बढ़ेगा। यह जितना उपयोगी है उतना ही स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक भी है। भावी पीढ़ी को इसके प्रभावों से अवगत कराना जरूरी है। साथ ही जरूरत पर ही इसका प्रयोग करना चाहिए यह भी समझना होगा।
कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्रोफेसर एवं खेल पदाधिकारी डॉ० अजय नाथ झा ने किया।जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो० अंतुन बनर्जी दिया।
मौके पर फाउण्डेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, डॉ० पारूल बनर्जी, डॉ० एस० बनिक, अनिल सिंह आदि मौजूद थे।