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दशकों से ‘भगवान’ के लिए कपड़े बना रहा ‘अल्लाह’ का बंदा
अब्दुल कादिर और उनके बेटे मो. सुहैल के हाथ से सिले कपड़ों से सुसज्जित होते है भगवान श्रीराम, जानकी और हनुमान के परिधान
पिछले तीन पीढ़ियों से लगातार सिलाई कर रहा अब्दुल कादिर और उनका परिवार
जानकी मंदिर, हनुमान मन्दिर, श्याम मंदिर समेत दर्जनों मंदिरों के कपड़ों की करता है सिलाई

ByFocus News Ab Tak

Mar 31, 2023

अमित कुमार की रिपोर्ट

सीतामढ़ी माता सीता की जन्मस्थली केवल आस्था, भक्ति और नारी शक्ति की स्थली ही नहीं, बल्कि सामाजिक सद्भाव की भी धरती रहीं है। समय समय पर सद्भाव का यह रंग दिखता रहता है। सामाजिक सद्भाव की यह तस्वीर सीतामढ़ी में अब भी बरकरार है। यहां ‘अल्लाह का बंदा’ तीन पीढ़ियों से ‘ईश्वर’ के लिए कपड़ा सिल रहा है। वह भी पिछले कई दशकों से। मो. अब्दुल कादिर और उनके बेटे मो. सुहैल के हाथ से सिले कपड़ों से सुसज्जित होते है भगवान श्रीराम, जानकी और हनुमान के परिधान। यह अलग बात है कि लोग मो. अब्दुल कादिर और उनके पुत्र मो. सुहैल के बारे में कम जानते हो। शहर के मुर्गियाचक निवासी मो. अब्दूल कादिर कोट बाजार स्थित हनुमान मंदिर के ठीक सटे परिवार टेलर्स नामक दर्जी की दुकान खोल रखी है। दुकान काफी पुरानी है। इसे उनके दादा मो. मुस्तफा ने पांच दशक पूर्व खोली थी। इसके बाद मो. अब्दुल कादिर और अब उनके पुत्र मो. सुहैल लोगों का कपड़ा सिलते है। यहीं उनकी आजीविका का आधार है। लेकिन इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि रामजानकी मंदिर, जानकी स्थान स्थित भगवान श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मण व वीर हनुमान समेत तमाम देवी देवताओं के कपड़े सिलते है। भगवान का कपड़ा सिलने की परंपरा को दादा और पिता के बाद मो. सोहैल आगे बढ़ा रहे है। उनके हाथ के कपड़े ही देवताओं को पहनाए जाते है। यही वजह है कि वे सामाजिक सद्भाव की मिसाल बन गए है। 25 बसंत पार कर चूके सुहैल पूछे जाने पर बताते है कि यह तो उनका पेशा है। लेकिन ईश्वर का कपड़ा बनाना बड़ी बात है। स्नातक तक की शिक्षा हासिल कर अपने पुश्तैनी कारोबार में लगे मो. सुहैल को ईश्वर, अल्लाह, गाड व वाहे गुरु में कोई फर्क नहीं नजर आता है। कहते है कि ईश्वर एक है। बताते है कि मंदिर के ठीक पास होने की वजह से वह और उनके पुरखे कपड़ा सिलते रहे है। उनके दादा मो मुस्तफा, पिता अब्दुल कादिर के बाद वह लगातार मंदिरों के भगवान के लिए कपड़ा सिलते रहे है। सिलाई की कोई कीमत नहीं है। जो मिलता है रख लेते है। मैट्रिक पास करते ही वह अपने पिता के काम में हाथ बांटना शुरू किया जो अब भी जारी है। बताते है कि देवी देवताओं के कपड़े सिलने की वजह से उन्हें उनकी कृपा मिल रहीं है। शायद यही वजह है कि उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं हुई और धंधा भी अच्छा खासा चल रहा है। दो बच्चे है, उनकी भी पढ़ाई चल रही है।
मो. अब्दुल कादिर बताते हैं कि मंदिर के निकट दुकान थी। लिहाजा यह मौका मिला। अब बच्चे इसका निर्वहन कर रहे है।
कोट बाजार स्थित हनुमान मंदिर के पुजारी पंo तेजपाल शर्मा और पंo मुन्ना शर्मा बताते है कि मो. सोहैल के दादा मो. मुस्तफा के समय से ही मंदिर के देवी-देवताओं के कपड़े सिलवाए जाते रहे है। अब यह परंपरा जैसी बन गई है।
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता व श्री सीता जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के महामंत्री राजेश कुमार सुन्दरका, मो. सुहैल और उनके पुरखों द्वारा भगवान के कपड़ों की सिलाई को सामाजिक सद्भाव करार देते हैं।

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