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रोजा की अधिक फजीलत और सवाब के कारण : मौलाना बदीउज्ज़मां नदवी कासमी

ByFocus News Ab Tak

Apr 7, 2023

अमित कुमार की रिपोर्ट

सीतामढ़ी : इंडियन काउंसिल ऑफ फतवा एंड रिसर्च ट्रस्ट बैंगलुरु कर्नाटक व जामिया फातिमा लिल्बनात मुजफ्फरपुर के चेयरमैन मौलाना बदी उज्जमां नदवी कासमी ने कहा कि रोजा का सवाब बेहद है। यह किसी नाप तौल और हिसाब का मोहताज नहीं, इसके सवाब की मात्रा अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। रोजा के सवाब के नौ महत्वपूर्ण कारण है।
पहला – रोजा लोगों से छिपा हुआ है, इसे अल्लाह के अलावा कोई नहीं जान सकता है, जबकि दूसरी इबादतों का यह हाल नही है, क्योंकि दूसरी इबादतें लोगों को मालूम हो सकती हैं। इस प्रकार रोजा सिर्फ अल्लाह के लिए है।
दूसरा : रोजा के दौरान श्रम और शरीर को धैर्य और सहनशीलता की भट्टी से गुज़रना पड़ता है। इसमें भूख-प्यास तथा अन्य में धैर्य रखना पड़ता है, जबकि अन्य इबादतों में इतना परिश्रम एवं आत्म त्याग नहीं है।
तीसरा : रोजा में दिखावा नहीं होता, जबकि दूसरे इबादत जैसे नमाज, हज, जकात आदि मे दिखावा हो सकता है।
चौथा : खाने-पीने से परहेज करना अल्लाह के गुणों में से एक है। हालांकि रोजा रखने वाला अल्लाह के इस गुण के समान नहीं हो सकता, लेकिन एक दरजे में वह अपने भीतर इस चरित्र को पैदा करके खुदा के करीब हो जाता है।
पांचवाँ : रोजा के सवाब का ज्ञान अल्लाह के अलावा किसी को नहीं है, जबकि अन्य इबादतों का सवाब अल्लाह ने इंसान को बता दिया है।
छठा : रोज़ा ऐसी इबादत है जिसे अल्लाह के सिवा कोई नहीं जान सकता, यहां तक कि फ़रिश्ते भी मालूम नहीं कर सकते।
सातवाँ : रोज़ा का संबंध अल्लाह की शान और कद्र के लिए है, जैसा कि बैतुल्लाह का संबंध सिर्फ श्रद्धा और सम्मान के लिए है, अन्यथा सभी घर अल्लाह का है।
आठवाँ : रोजेदार अपने अंदर फरिश्तों के गुण विकसित करने की कोशिश करता है, इसलिए वह अल्लाह को प्यारा है।
नौवां : सब्र के सवाब की कोई सीमा नहीं होती, इसलिए रमजान के रोजों के सवाब को असीमित करार देते हुए अल्लाह तआला ने इसको अपने से संबंधित किया है कि इसका सवाब मैं स्वयं दूंगा।

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