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कुल्हा व घुटना प्रत्यारोपण कर डा अवधेश ने जिला चिकित्सा जगत में बनाई अलग पहचान

ByFocus News Ab Tak

Jun 30, 2023

मो.कमर अख्तर की रिपोर्ट

सीतामढ़ी- आस्था अर्थापेडिक हाॅस्पिटल के प्रबंध निदेशक डा अवधेश कुमार ने बहुत कम समय में सीतामढ़ी आर्थोपेडिक चिकित्सा जगत में अपनी अलग पहचान बना ली है। वह पिछले तीन वर्षों से रिंग बांध स्थित क्लिनीक में सेवा दे रहे है। उनके द्वारा कुल्हा व घुटना का प्रत्यारोपण किया जाना सीतामढ़ी चिकित्सा जगत में बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। डा अवधेश अब तक दर्जनों कुल्हा व घुटने का प्रत्यारोपण कर चुके है। वह सीतामढ़ी में अब तक पांच कुल्हा व चार घुटने का सफल प्रत्यारोपण कर चुके हैं।

डॉक्टर्स डे के पूर्व संध्या पर डा अवधेश ने बताया कि कुल्हा व घुटना प्रत्यारोपण एक शल्य चिकित्सा है, जिसमें कुल्हे व घुटने के जोड़ की हड्डी को निकाल कर नकली जोड़ लगाया जाता है। प्रत्यारोपण में दोनों ज्वाइंट के दोनों ऐसाटाबुलम और हेड आफ फीमर की हड्डी को रिप्लेसमेंट कर आर्टिफीशियल ज्वाइंट लगाया जाता है। मानव को चलने फिरने में दर्द महसूस होने लगता है और फर्क पड़ने लगता है, तो कुल्हा व घुटने के प्रत्यारोपण की नौबत आती है। कुल्हा व घुटना प्रत्यारोपण के पश्चात मरीज तीन दिनों में चलना शुरू कर देता है।
चेहरे पर भूरा व काला धब्बा हो सकता है मेलास्मा : डा प्रियंका

मेलास्मा एक प्रकार का चर्म रोग है। जिसमें त्वचा पर हल्के भूरे, काला धब्बा अथवा दाग हो जाता है। आमतोर पर इसे झाइयों के नाम से भी जाना जाता है। यह चेहरे के मध्य भाग गाल, नाक, माथे व ठुड्ढी पर धब्बे के रूप में आ जाता है। उक्त बातें प्रख्यात चर्म रोग विशेषज्ञ डा प्रियंका कुमारी ने कही। डा प्रियंका ने बताया कि मेलास्मा या झाइयां एक प्रकार का चर्म पिग्मेेंटेशन की समस्या है। यह अधिकाशत: महिलाओं को सुरज के अल्ट्रा वायलेट किरणों के संपर्क में आने से होता है। विशेष रूप से महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान एवं जिन व्यक्तियों के त्वचा का रंग गहरा होता है, उन व्यक्तियों में ज्यादातर पाया जाता है।
त्वचा में एक प्रकार का पिग्मेंटेशन है। स्किन सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वायलेट किरणों को रोकने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। जब कोशिकाएं मेलानिल मेनोलेसिटज बनाते हैं तब उसमें खराबी आ जाती है। हार्मोन में बदलाव एवं अल्ट्रा वायलेट किरणें अधिक पड़ने से त्वचा के पिंगमेंट में बदलाव आने लगता है। भुरे धब्बे के रूप में चेहरे पर आने लगता है। पहले से मेलास्मा की परेशानी है तो स्ट्रेस के कारण बढ़ सकता है।
डा प्रियंका ने कहा कि मेलास्मा से बचने हेतु सूर्य की किरणों के सीधे संपर्क में आने से बचना चाहिए। घर से बाहर निकलने से पहले सनस्क्रीन क्रीम लोशन का उपयोग करें। धूप में चेहरे पर गमछा, स्कार्फ, चश्में, बुर्का और छाता का इस्तेमाल करें। सनस्क्रीन लोशन का उपयोग चर्म रोग विशेषज्ञ की सलाह से करें। उन्होंने कहा कि धब्बे हटाने हेतु रसायनिक पीलींग, ब्राइटिनिंग एजेंट एवं कुछ प्रकार की क्रीम और लोशन आदि दिया जाता है।


दांतों का सही देखभाल नहीं करना दंत रोग की समस्या का कारण : डा आदिस खान

दांतों में दर्द होने का प्रमुख कारण दांतों के प्रति सतर्कता नही बरतना है। दांतों का सही से देख भाल नहीं करना है। साफ़ सफ़ाई तथा ख़ान के बाद की प्रक्रिया पर सजग नहीं रहना इसका प्रमुख कारण है। उक्त बातें प्रसिद्ध दंत रोग विशेषज्ञ आदिस खान ने कही। उन्होंने कहा कि दांतों में बनते बैक्टीरिया प्लाक कि रूप में बनते जाते है तथा कैलकुल्स जो टार्टर कहलाता है। ये बढ़ते बढ़ते दांतों में पेरियोडोंटल प्रॉब्लम हो जाता है। जिससे दांतों तथा मसूड़े में परेशानी का रूप ले लेती है। उन्होंने कहा कि सही देख भाल नही करने से डेंटल कैरिज़ होने लगता है। जिससे दांत सड़ने लगता है।
डा आदिस ने कहा कि दांतों को सही रखने कि लिए खाने के पश्चात मुँह को सही से धोना या कुल्ला करना आवश्यक है। सुबह एवं रात्रि के भोजन के बाद ब्रश करना चाहिए। हफ़्ते में दो बार क्लोरोहेक्सिडन माउथ वाश से कुल्ला करना और चिपचिपा प्रदार्थ यानी चिप्स, चॉकलेट जैसे चीज़ों से परहेज़ करना चाहिए। चीनी या कारबोहाइड्रेट से बनी चीज़ें यानी कोल्ड ड्रिंक, सैलाइस जैसी चीज़ों से परहेज़ करने के साथ गुटखा तंबाकू से दूर रहना चाहिए। दांत को रोग से बचाने के लिए धूम्रपान एवं कथा कसैलियो से दूर रहना एवं हर 3 महीने में ब्रश बदलना एक अच्छा उपाय है। इनसे डेंटल समस्या से बहुत हद तक बचा जा सकता है। दांत की कोई समस्या अगर हो तो दंत चिकित्सक से परामर्श लें।

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