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समान नागरिक संहिता देश में राष्ट्रीय वैमनस्यता का कारण बनेगी : मौलाना बदी-उज्जमां नदवी कासमी

ByFocus News Ab Tak

Jul 3, 2023

मो.कमर अख्तर की रिपोर्ट

सीतामढ़ी – मुस्लिमों के साथ अन्य समुदाय भी समान नागरिक संहिता के विरोध में हैं। वर्तमान सरकार और एक निश्चित वर्ग के लोग इसे लागू करने के लिए मंथन करने की पूरी कोशिश कर रहे है। उक्त बातें देश के जाने माने इस्लामिक विद्वान इंडियन काउंसिल ऑफ फतवा एंड रिसर्च ट्रस्ट बैंगलुरू और जामिया फातिमा लिल्बनात मुजफ्फरपुर के चेयरमैन मौलाना बदी उज्जमां नदवी कासमी ने एक प्रेस बयान में कही।

मौलाना कासमी का कहना है कि मुसलमानों की असहमति का मुख्य कारण यह है कि “समान नागरिक संहिता” धार्मिक शिक्षाओं के विपरीत है, इसके लागू होने के बाद पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन में कुरान और सुन्नत के निर्देशों को छोड़ना होगा। ऐसा कानून अपने जीवन में लागू करना होगा, जिससे धर्म की निर्धारित सीमाएं खत्म हो जाएंगी और व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से हलाल और हराम का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। मुसलमान इसके लिए बाध्य होने को तैयार नहीं है कि व्यक्तिगत मुद्दों और समस्याओं का समाधान ऐसा खोजें जिनका हर कदम पर धर्म से टकराव होता रहे।
उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसमें सभी लोगों को अपने धर्म का पालन करने की पूरी आजादी है। धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह नहीं है कि भारत में “समान नागरिक संहिता” लागू किया जाए, जिन लोगों ने इस्लाम का अध्ययन नहीं किया है उन्हें समान नागरिक संहिता कानून के लागू के खिलाफ मुस्लिम जनमत की वजह समझ में नहीं आ सकती। जो मुसलमानों की धार्मिक संबद्धता का ज्ञान नही रखते वह अंदाज़ा नही लगा सकते। वे कल्पना नहीं कर सकते कि इस मुद्दे पर मुस्लिम जनमत कितना मजबूत हो सकता है। धर्म और इस्लामी शिक्षाओं की व्यापकता के प्रति उनकी मजबूत प्रतिबद्धता उसे व्यक्तिगत जीवन के धार्मिक नियमों को त्यागने की अनुमति न दें, क्योंकि ये धार्मिक नियम भी धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उनका आधार भी कुरान और सुन्नत में पाया जाता है। जिस तरह नमाज, रोजा और दूसरी इबादत हैं।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हाई कोर्ट की जज जस्टिस प्रतिभा सिंह ने कोई नई बात नहीं कही है, सुप्रीम कोर्ट भी यही कहता है, लेकिन ऐसा होना बहुत मुश्किल है। क्योंकि देश में सभी धर्म और जाति समुदाय के लोग रहते हैं और सभी को अपने मजहब के मुताबिक जिंदगी गुजारनी है। देश का संविधान और हमारा धर्म भी यही कहता है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म के पालन करने की पूरी आजादी है।
उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकता का स्रोत नहीं बन सकता, बल्कि राष्ट्रीय वैमनस्यता का माध्यम जरूर बन सकता है। इसलिए सभी धर्म के लोगों के साथ चर्चा के बाद ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिससे देश में रहने वाले सभी धर्म, संस्कृति और भाषाई इकाइ अपने को सुरक्षित समझें और वह कानून के सीमा में रहकर देश की स्थिरता और विकास में भाग ले सकें।

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