बिहार विधान सभा व परिषद के संयुक्त अधिवेशन में उनका संबोधन विकसित बिहार के लिए मील का पत्थर : डीसीएलआर
डा कलाम को देख मांसाहारी से शाकाहारी बने डीसीएलआर ललित
डीसीएलआर ललित ने डा कलाम के बिहार की सोंच पर लिखी ” डा कलाम के सपनों का बिहार” पुस्तक
मो कमर अख्तर की रिपोर्ट
सीतामढ़ी – पूर्व राष्ट्रपति, प्रख्यात वैज्ञानिक व मिसाइल मैन डा ए पी जे अब्दुल कलाम की 8 वीं पुण्यतिथि पर डीसीएलआर पुपरी ललित कुमार सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित किया। डीसीएलआर ललित ने कहा कि डा ए पी जे कलाम साहब प्रख्यात वैज्ञानिक के साथ साथ एक महान शिक्षा विद्व थे। उन्हें शिक्षा से विशेष लगाव था। राष्ट्रपति रहते हुए भी यदा कदा छात्रों को शिक्षा देते नजर आए। उन्हें मिसाइल मैन के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि वह सादगी के लिए हमेशा जाने जायेंगे। वह बहुत मधुर स्वभाव एवं आमजनों के सहयोगी थे। मैं उन्हें उनकी 8 वीं पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन करता हूं।
डीसीएलआर ललित ने कहा कि डा कलाम को बिहार से विशेष लगाव था। वह बिहार को विकसित राज्य बनाना चाहते थे। यही कारण है कि वह बार बार बिहार की यात्रा किए। यात्रा के दौरान विभिन्न कॉलेज में जाकर छात्र छात्राओं को संबोधित करते थे। नालंदा और पटना जिला के किसानों को आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित करते थे। बिहार राज्य को अग्रणी राज्य बनाने के लिए राष्ट्रपति काल में बिहार विधान सभा एवं बिहार विधान परिषद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया था। उनका संबोधन आज भी विकसित बिहार के लिए मील का पत्थर है। डा कलाम और उनकी सोंच पर आधारित पुस्तक ” डा कलाम के सपनों का बिहार” ललित कुमार सिंह द्वारा लिखी गई है। जिसका प्रकाशन नई दिल्ली स्थित प्रभात प्रकाशन ने किया है। यह पुस्तक बिहार के युवाओं के लिए प्रेरणादायी पुस्तक है।
मालूम हो कि डीसीएलआर ललित बिहार लोक सेवा में आने से पुर्व दिल्ली पुलिस में कार्यरत थे। इस दौरान कलाम साहब के अधिनिस्थ उन्हें कार्य करने का मौका मिला। यही से डीसीएलआर ललित की जिंदगी में बदलाव आया और उनके पदचिन्ह पर चलने की ठानी। आज उनके नक्शे कदम पर चल जीवन सादगी में जीना पसंद करते है और नौकरी से समय निकाल प्रतियोगी परीक्षा के परीक्षार्थी को निःशुल्क शिक्षा देते है। यही नही मांसाहारी ललित राष्ट्रपति कलाम से प्रेरणा लेते हुए शाकाहारी बन गए।
डीसीएलआर पुपरी ललित कुमार सिंह ने बताया कि डा कलाम साहब का पुण्यतिथि अपने स्तर या सामूहिक रूप से मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कलाम साहब का व्यक्तित्व किसी जाति व मजहब का नहीं था। उनके पुण्यतिथि पर अखबार द्वारा उन्हें उपेक्षा किये जाने पर मर्माहत हूं, वह शायद किसी खास जाति के नेता होते तो उनकी जीवनी को बड़े बड़े अक्षरों में फोटो के साथ लिखा जाता।