राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान से सम्मानित गीतकार गीतेश जी की कलम से
चित्रकार ने ऐसी पेंटिंग बनाई
जिसकी ख्याति दूर -दूर तक छाई
वाकई लाजवाब तरीके से बनाई गई थी
कई जानवर के अंगों से सजाई गई थी
कुछ हिस्से लोमड़ी के,कुछ गिद्ध के
कुछ गिरगिट के,कुछ मगरमच्छ के
तो कुछ हिस्से सांप के थे-
ढंग इसके अपने आप के थे
पेंटिंग करोड़ों में नीलाम हो गई
चित्रकार की फटेहाल स्थिति भी मालामाल ही गई।
मीडिया वालों ने चित्रकार से पूछा
आपकी पेंटिंग में नये प्राणी का स्वरूप झलकता है
इस धरती के किसी प्राणी से इसका नहीं रूप मिलता है
चित्रकार ने कहा-
हमने पेंटिंग में दर्शाया/जो विचित्र प्रजाति है
वह कोई और नहीं /बस नेता की जाति है
यह सांप की तरह/समाज को डंसता है
लोमड़ी की तरह/धूर्त खोपड़ी रखता है
गिद्ध की तरह देश को/नोचकर खाता है
मगरमच्छ की तरह/झूठे आंसू छलकाता है
गिरगिट की तरह रंग बदलता है और पूरे कौम को छलता है
इन जानवरों के अंदर जो बुराई है
नेता के अंदर ये सब समाई है
मंच पर चढ़कर फिर भी बोलता-
करते हम देश की भलाई हैं
यह पेंटिंग/नेता के चरित्र को दर्शाती है
सोए समाज को/झकझोर के जगाती है
अगर हमें चाहिए इन जानवरों से मुक्ति
तो ढूंढनी होगी हमें कोई युक्ति
मैं तो बड़ी बेसब्री से
उस दिन की प्रतीक्षा में हूं
जब आजादी के सपने को साकार करने हेतु
कोई मसीहा/इस
भारत भूमि पर अवतार ले
और मेरी तरसती हुई आंखें
उनकी छवि को/अपनी पेंटिंग में उतार लें।
प्रतीक्षा में हूं
