राम शंकर शास्त्री पत्रकार सह सदस्य मिथिला राघव परिवार सेवा न्यास पुनौराधाम सीतामढी

सीतामढी के पुनौराधाम से फिर मडई में कैसे आती है
भीषण दुकाल पड़ा था जब त्राहिमाम चिल्लाते है
अहिल्या पुत्र विव्दान पंडित जब जनक को बतलाते हैं
जोते हल स्वयं जनक तो धरती फिर हरसाती है
अपने तेज बल को लेकर वर्षा जब बरसात है
राज जनक उस तेज देख गौरव से भर जातें हैं
धरती प्रदत्त उस दिव्य कन्या को पुण्डरीक को दिखलाते हैं
ले लें इस दिव्य रत्न को आरजू मीन्नत करते हैं
शास्र विरुद्ध प्रस्ताव बता वे राजा को समझाते हैं
धरती आपकी इस थाती से हम अन्न पानी ही पाते हैं
धरती के अन्दर के रत्नों को वे राजा को बतलाते हैं
स्वीकार करें इस भू प्रसाद को फिर जब उन्हें बताते हैं
निज कन्या की भांति उसके पालन का राह दिखाते हैं
हर्षित होकर विदेह उनका आशीष बताते हैं
फिर हर्षित सम्पूर्ण कथा सुनैना को बतलाते हैं
फूस घांस का पराव बना जो मँडई कहता है
सीत से निकली सीता बन कर उस मडई में आतीं हैं
सुनैना के गोद में आकर वह जानकी कहलाती है
सीता के उस मडई में आते सीतामडई बन जाती है
जहाँ आज एक दिव्य युगल विग्रह जो जानकीस्थान कहलाता है
सीता के वहां आ जाने से फिर सीतामढी कहाता है
पुण्य उर्वराभूमि पुनौराधाम कहलाता है
निकली जहां जिस मिट्टी सीता कुण्ड कहलाता है।

जिसके एक परिक्रमा का फल हजार गोवर्धन परिक्रमा हो जाता है
जहाँ सिध्द संत मुनि आकर शीश नवाते हैं
सीता के जानकी बनने का मर्म सबको बतलाते हैं
वैशाख शुक्ल नवमी की पुण्यतिथि जब मो मनाने आते है
ऋषि मुनि मानव मात्र देवता गण भी आते हैं
सब मिलकर जै जै कार मना कर सीता का गुण गाते हैं
हम भी जन्में इस धरती सीता के भाई कहलाते हैं
आचारण वैसा करते नहीं सिर्फ भाई का दम्भ दिखाते हैं
आचारण यदि करें वैसा जैसा सीता कर दिखलाई है
फिर यह अयोध्या से बड़ा बनेगा इसमें न संसंय भाई है
वे राम कथा कहते होंगे हम सीता कथा सुनाते हैं
दुनियां उसे मां कहें परन्तु सीता मेरी बहना है
मेरे इस पुण्य भूमि पुनौराधाम का सुन्दर गहना है ।



