ब्यूरो रिपोर्ट सीतामढ़ी
सीतामढ़ी- मुस्लिम सिटीजंस फार एम्पावरमेंट के अध्यक्ष मो कमर अख्तर ने कहा कि ऊर्दू के क्रियान्वन एव प्रचार प्रसार के लिए बिहार सरकार कृत संकल्पित और गंभीर है, वहीं जिला उर्दू भाषा कोषांग उर्दू के प्रति उदासीन है।

उर्दू निदेशालय, मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा बार बार सरकारी कार्यालय, भवनों में उर्दू में बोर्ड प्रदर्शित करने के आदेश के बावजूद क्रियान्वन नही हो पाया। उर्दू के प्रति उदासीनता यह है कि जिला समाहरणालय ही उर्दू में अंकित नही है। उन्होंने कहा कि समाहरणालय के साथ ही जिन कार्यालयों में नही है उन कार्यालयों एवं भवनों पर बोर्ड लगाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेमिनार के स्थल का चयन ऐसा हो कि आंगुतकों को परेशानी न हो। डुमरा हवाई अड्डा में खुले आसमान के नीचे जिला उर्दू भाषा कोषांग द्वारा कार्यशाला, सेमिनार, मुशायरा का आयोजन 27 मार्च को दोपहर 3 बजे से आयोजित था। चिलचिलाती धूप में बैठना कष्टदायक था। पूर्व में नेहरू भवन, राजेंद्र भवन एवं परिचर्चा भवन में कार्यक्रम का आयोजन होता था। सेमिनार में तीन आलेख पाठकों के नाम थे लेकिन केवल दो लोगों को ही मौक़ा दिया गया | कुछ बालिकाओं को भी लेख पाठन के लिए बुलाया गया था वो पूरे प्रोग्राम में रहीं मगर उन्हें मौक़ा नहीं दिया गया | जबकि एक आलेख पाठक को दो बार मौक़ा दिया गया | उर्दू का विकास उत्थान तभी संभव है जब लोग इसकी शुरूआत स्वयं एवं समाज से करें। कमर अख्तर ने कहा भाषा किसी जाति धर्म की नहीं होती। उर्दू ने सीतामढ़ी की लेखिका आशा प्रभात को ख्याति दी है। प्रोफेसर गोपीचंद नारंग ने भी उर्दू साहित्य के कारण ही साहित्य अकेडमी के चेयरमैन के पद को सुशोभित किया था। बीते जमाने में उर्दू का हर जगह इस्तेमाल किया जाता था आज हम स्वयं दूर होते जा रहे है। रजिस्ट्री दस्तावेज उर्दू में लिखवाया जाता था अब हमने उर्दू को छोड़ दिया। यही नही शादी का कार्ड भी कम ही लोगों द्वारा उर्दू में प्रकाशित कराया जाता है। उर्दू के विकास में उर्दू वाले ही बाधक है। सेमिनार एवं कार्यशाला में उर्दू के लिए बोल देने से मात्र उर्दू का विकास नही होगा। बल्कि इसके लिए जमीनी सतह पर कार्य करने की जरूरत है। उर्दू माध्यम विद्यालय कागज पर सिमट कर रह गया है। इन विद्यालयों में भाषा छोड़ सभी विषयों की पढ़ाई उर्दू में होनी चाहिए। बिहार सरकार द्वारा पूर्व में भाषा छोड़ सभी विषयों की किताबें उर्दू में प्रकाशित की जाती थी और विद्यालय को उपलब्ध कराया जाता था। अब किताब की राशि दी जाती है, लेकिन प्रश्नपत्र आज भी उर्दू भाषा में मुहैया कराया जाता है। सामान्य विद्यालय उर्दू शिक्षक की नियुक्ति के बावजूद उर्दू भाषा की पढ़ाई नही होती। राज्य की दूसरी राजभाषा की पढ़ाई एवं उर्दू भाषी छात्र अपनी मातृ भाषा की पढ़ाई से वंचित रह जाते है।