ब्यूरो रिपोर्ट
सीतामढ़ी- रमजान जहां एक ओर रहमत व बरकत का महीना है, अल्लाह से निकटता प्राप्त करने का महीना है, अपने गुनाहों से तौबा का महीना है, आत्मा की शुद्धि का महीना है, नफ्स की शुद्धि का महीना है, वहीं मनुष्य के भीतर मानवता पैदा करने का महीना है।

प्रसिद्ध युवा धार्मिक विद्वान मौलाना जमील अख्तर शफीक तैमी ने ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा: रमजान इंसान में मानवता पैदा करने वाला महीना है क्योंकि आप देखें प्यारे पैगंबर सल्लाहे अलैहे वसल्लम ने कहा: यदि रोजा (उपवास) की हालत में कोई तुम्हें गाली भी दे या अपमानित करे तो तुम इसका जवाब न दो, बस सिर्फ इतना कहो कि मैं रोजे से हूं, यह काम इतना आसान भी नही है।

जितना आम तौर पर लोग कह कर निकल जाते हैं। प्यारे पैगंबर के इस कथन में इतना बड़ा संदेश और सफलता का दर्शन छिपा हुआ है, जिसे कुछ शब्दों में समेटा नहीं जा सकता है। फिर भी धरातल पर आने वाली समस्याओं और समाज में अफरा तफरी का जो माहौल आम तौर पर पैदा होता है। उस हवाले से सोंचा जाए तो प्यारे पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा और ज्ञान से भरी इस हदीस की महत्व का अंदाजा होता है।

दुनिया में जितने बड़े फसाद और बिगाड़ पैदा होते हैं, उनमें भाषा का महत्वपूर्ण भुमिका होता है। जब तक हमारी भाषा नियंत्रण में है तब तक हम सुरक्षित हैं लेकिन जैसे ही हम अपनी भाषा को अनियंत्रित करते हैं, जिंदगी आसान होते हुए भी बहुत कठिन होने लगती है। प्यारे पैगंबर का यह कहना की गाली या अपमान का जवाब न दिया जाये। दरअसल यह सबक देता है कि हम अल्लाह से उसी वक्त करीब हो सकते हैं। जब हमारे पास सहनशक्ति की क्षमता होगी और जब हम भरपुर सलाहियत होगी और जब हम में यह गुण पैदा हो जाएगी तो हम जहां एक तरफ अल्लाह की नजरों में अच्छे बंदें में गिनती किए जायेंगे, वहीं जिंदगी के किसी भी क्षेत्र में हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।

