सीतामढ़ी से राहुल द्विवेदी का खास रिपोर्ट

सीतामढ़ी जिले की देसी चिकित्सा की हालात भगवान भरोसे कहने को तो जिले में 7 अस्पताल है। पर बरसों से यहां मात्र एक डॉक्टर सुरेंद्र शर्मा के सहारे सीतामढ़ी और शिवहर जिला चल रहा है ऐसे में सरकार की तमाम वादे लगता है कागज पर ही चलता है। देसी चिकित्सा में एक भी होम्योपैथिक डॉक्टर नहीं है ना ही एक भी यूनानी डॉक्टर है ऐसे में सरकार के उत्तम स्वास्थ्य व्यवस्था की दावे पूर्णता फेल नजर आती है। कोरोना का काल में पूरा विश्व जहां अपनी प्राचीनतम विधा आयुर्वेद की तरफ लौटी है वही बिहार सरकार और केंद्र सरकार की तमाम वादे यहां झूठे प्रतीत होते नजर आ रही है।

सन 1984 के बाद बिहार सरकार ने देसी चिकित्सा के संपूर्ण बिहार में अंतर्गत नही ही डॉक्टर की बहाली की ,ना ही पारा मेडिकल स्टाफ की और सिलसिला ऐसा हुआ कि आज बिहार के संपूर्ण जिले में अधिकांश चिकित्सक और पारा मेडिकल स्टाफ के पद रिक्त। इसी क्रम में वर्ष 2019 में बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव के आदेशानुसार आउटसोर्सिंग के माध्यम से पूरे बिहार में 640 पारा मेडिकल स्टाफ की बहाली की गई जिससे आम जनता में आस जगी की अब बिहार में बेहतर आयुर्वेदिक चिकित्सा मिलेगा परंतु ना जाने किसकी नजर लग गई और पुनः मार्च 2022 सरकार के संयुक्त सचिव ने नया फरमान जारी किया की आउटसोर्सिंग एजेंसी वैष्णवी हॉस्पिटल पटना का इकरारनामा मार्च के बाद नहीं रहेगा।

जबकि बिहार सरकार की लेबर डिपरमेंट का नियम है की किसी भी प्राइवेट संस्था में भी कर्मचारी हटाने के 3 महीना पहले सूचना दी जाती, परंतु यहां सरकार के पदाधिकारी और मंत्री अपनी गलती को छुपाने के लिए रातों-रात तुगलकी फरमान जारी करके 640 युवाओं को सड़क पर ला दिया।इसी बीच मीडिया से मुखातिब होते हुए बिहार सरकार के माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि अप्रैल माह में पूरे बिहार में आयुष चिकित्सक बहाल हो जाएंगे। ऐसे में अब नहीं लगता है कि फिर से यह आयुर्वेदिक अस्पताल पटरी पर लौट पाएगा पूरे बिहार की स्थिति यह है की ना ही पारा मेडिकल स्टाफ है और ना ही डॉक्टर। बिहार में 5 आयुर्वेदिक महाविद्यालय सभी बंद गई ,एक यूनानी महाविद्यालय वो भी बंद पड़े हैं। पूरे बिहार में एकमात्र मुजफ्फरपुर में होम्योपैथिक महाविद्यालय कार्यरत जहां पीजी तक की पढ़ाई होती है।
परंतु इस पड़ताल में यह भी पता चला है की सभी महाविद्यालय बंद पड़े है,पूरे बिहार की देसी चिकित्सा में चिकित्सक और पैरामेडिकल स्टाफ नहीं फिर भी यह अस्पताल सरकार और पदाधिकारी के नजर में खुला हुआ है मतलब यह साफ है कि सरकार और बड़े पदाधिकारी सभी लोग कागज पर ही इन अस्पतालों और महाविद्यालय का संचालन कर रहे हैं जिससे बिहार में बहुत बड़े घोटाले की बू आ रही है।



दूसरी तरफ राज्य सरकार और केंद्र सरकार जहां युवाओं को रोजगार देने की बात करती है आज वहां सुशासन बाबू के यह अफसर बाबू अपने एक सिग्नेचर पर कोरोना से वैश्विक महामारी में सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर बहुत न्यूनतम वेतन पर काम करने वाले कर्मचारी को सड़क पर लाकर खड़ा कर दी है। ऐसे में यह युवा पुनः बेरोजगार हो गए। अभी महाविद्यालय में करोड़ों करोड़ों की दवा प्रति वर्ष खरीदी जाती है यही नहीं सभी जिले में भी जिला चिकित्सा चिकित्सा पदाधिकारी द्वारा लाखों की दवा खरीद होती है परंतु जब डॉक्टर ही नहीं हैं पारा मेडिकल स्टाफ ही नहीं है तो यह दवा आखिर जाता कहां है मिलता कहां है इसके जिम्मेवार कौन है सरकार या पदाधिकारी सभी अपना पल्ला झाड़ कर निकलते हुए प्रतीत होते हैं।

सरकार की संयुक्त सचिव से फोन पर बात करने पर पता चला कि कोर्ट के आदेश पर यह टेंडर रद्द किया गया या टेंडर बिना निविदा के द्वारा सरकार ने वैष्णवी हॉस्पिटल पटना को दे दिया था। ऐसे में पूछना लाज़मी होता है की गलती किए सरकार के अवसर और सजा होगे यह युवा यह कैसी सुशासन बाबू की सरकार।
