
मो.कमर अख्तर की रिपोर्ट
सीतामढ़ी- नमाज के बाद जकात का ही दर्जा है। पवित्र क़ुरआन में ईमान के बाद नमाज़ और उसके साथ ही ज़कात का ज़िक्र किया गया है। जकात का शाब्दिक अर्थ है शुद्ध होना, बढ़ना और विकसित होना।

यह आर्थिक इबादत है। यह न केवल जरूरतमंदों के लिए प्रदान करने और धन बांटने का सबसे उपयुक्त कार्य है, बल्कि यह इबादत का एक रूप भी है जो दिल और आत्मा की गंदगी को साफ करता है। मनुष्य को अल्लाह का सच्चा बंदा बनाता है। इसके अलावा, ज़कात अल्लाह द्वारा दिए गए असंख्य आशीर्वादों को स्वीकार करने और धन्यवाद देने का सबसे अच्छा साधन है।
आज के हिसाब में कितनी धन दौलत पर ज़कात का है?

बाजार में चांदी साढ़े बावन तौले की जितनी मूल्य हो उतनी कीमत की सम्पत्ति पर, चूंकि चांदी की कीमत में उतार-चढ़ाव होता रहता है, इसलिए इसका मूल्य लिखना मुनासिब नही है। जिस दिन जकात वाजिब हो, उस दिन का मूल्य मान्य है।
यदि निसाब से केवल सोना कम है, तो ज़कात अनिवार्य नहीं है।
जकात की निसाब न्यूनतम राशि साढ़े सात तोले सोने या साढ़े बावन तोला चांदी के मूल्य के बराबर है। जो वर्ष की संचित संपत्ति पर ढाई प्रतिशत की दर से तय की गई है। यह धन की न्यूनतम राशि है जिस पर ज़कात अनिवार्य है। इससे इंकार करना इंसान को इस्लाम के दायरे से बाहर कर देता है और दूसरी ओर, यह मुसलमानों को ईमान को खतरे में डाल देता है।


ज़कात निम्नलिखित चीजों पर अनिवार्य(फर्ज) है:
(1) सोना साढ़े सात तोला या इससे अधिक हो।
(2) चाँदी साढे बावन तोला या इससे अधिक हो।
(3) रुपया, पैसा और व्यापार जबकि इसकी कीमत साढे बावन तोले चांदी के बराबर हो।
नोट: *यदि किसी व्यक्ति के पास थोड़ा सोना, कुछ चाँदी, कुछ नगद रूपये हैं, कुछ माल एवं व्यापार है और उनका कुल मूल्य साढ़े बावन तोले चाँदी के बराबर हो तो उस पर भी ज़कात फर्ज है। इसी तरह, अगर कुछ चांदी है, या कुछ सोना है, कुछ नकद है, कुछ माल है, तो कुल सम्पति उन्हें साढ़े बावन तोले चांदी के कीमत के बराबर है या नहीं। अगर है तो ज़कात वाजिब है, वरना नहीं। सोना, चाँदी, नकद, व्यापार की वस्तुओं का मूल्य चाँदी के निसाब के मूल्य के बराबर हो, तो उस पर ज़कात अनिवार्य है।
(4) इन चीजों के अलावा, चरने वाले मवेशियों पर भी ज़कात अनिवार्य है, और भेड़, बकरी, गाय, भैंस और ऊंट के लिए अलग-अलग निसाब हैं। इस संबंध में इस्लामिक विद्वानों से सम्पर्क करें।
(5) उशरी भूमि की उपज पर भी ज़कात अनिवार्य है, जिसे “उशर” कहा जाता है। इस विवरण को भी इस्लामिक विद्वान से लिए समझें।
नोट: ज़कात अनिवार्य करने की शर्तों में से एक यह है कि उस पर एक वर्ष बीत जाना चाहिए और व्यक्ति इतना ऋणी नहीं होना चाहिए कि ऋण चुकाने के बाद वह साहबे निसाब न रहे।

सोने और चांदी का वर्तमान ग्राम;
चाँदी का निसाब साढ़े बावन तोला चाँदी है। वर्तमान ग्राम के अनुसार यह छह सौ बारह (612) ग्राम तीन सौ साठ (360) मिलीग्राम है और सोने का निसाब साढ़े सात तोला सोना है। वर्तमान ग्राम के अनुसार 87 ग्राम चार सौ अस्सी (480) मिलीग्राम का होता है।
किन किन लोगों को जकात देना जायज नही है…..?
अमीर, सैय्यद, बन्नी हाशिम, मां, बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, बेटा, बेटी, पोता, पोती, पोती, नाती नतिनी को ज़कात का पैसा देना जायज़ नहीं है, इसी तरह पति-पत्नी एक-दूसरे को ज़कात का पैसा नहीं दे सकते।
किन लोगों को ज़कात देने जायज है…..?
गरीब भाइयों और बहनों, चाची, चाचा, चचेरे भाई, चाची, मौसा मौसी, मामू ममानी, सास ससुर, फूफा फूफू को ज़कात देना जायज़ और सवाब है। इसी तरह उपर अंकित किए गए वह रिश्तेदार जिनको ज़कात देना जायज नही, उनके अलावा जितने करीबी रिश्तेदार हैं सबको जकात दी जा सकती है।