
सीतामढ़ी के सोनबरसा से मो.कमर अख्तर
ईद का दिन सभी मानव जाति को आमंत्रित करता है कि इस्लाम धर्म शांति और सुरक्षा का गारंटर, निस्वार्थता और करुणा का शिक्षक और भाईचारे और समानता का धर्म है।
ईद मुसलमानों को दूसरे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना सिखाता है और उनके साथ ईद की खुशियों में हिस्सा लेने दें और आज अपने कर्मों से इस्लामी मानव सेवा और कर्तव्यों के शानदार पहलू को उजागर करें। पैगंबर मोहम्मद सल्लाहे अलैहे वसल्लम की शिक्षा और इस्लामी आदेश वास्तव में पूरी दुनिया के लिए एक रहमत और मार्गदर्शन हैं। ईद के संदेश को पैगंबर मोहम्मद ने अपने उम्मत को सिखाया और इसकी व्यावहारिक तस्वीरें पेश कर उनके दिलों पर हमेशा के लिए खुशी का पाठ अंकित कर दिया।

ईद के दिन मुसलमानों को अपने समुदाय, अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ-साथ अनाथों, विधवाओं, जरूरतमंदों, विकलांगों और गरीबों को देखभाल करनी चाहिए।
जब तक हम ग़रीबों के साथ मिल कर ईद नहीं मनाएंगे, ईद की सच्ची खुशियों से वंचित रहेंगे। ईद हमें आमंत्रण, त्याग और भक्ति की ऊंचाइयों, पवित्रता और नवीनीकरण का पाठ पढ़ाता हैं, परिवर्तन और क्रांति का संदेश देता हैं।
आज ईद की नमाज़ से पहले हर मुसलमान पर सदका थोडा सा दान वाजिब है। इस दान का नाम सदका फितर है। कम से कम आज, गरीब से गरीब को भी इस्लामी आदेश के कार्यान्वयन में भूखा न रहने पायें।

इस्लाम के विचारक हज़रत मौलाना सैयद अबुल हसन अली हसनी नदवी (अल्लाह उन पर रहम करे) फरमाते हैं: धर्म का ऐसा उदाहरण पेश करो और दुनिया के सामने लाओ ताकि दुनिया की भी ईद हो जाये। ईद बहुत दिनों से दुनिया में मनाया नहीं गया दुनिया ईद से वंचित है क्रिसमस और होली दिवाली, लेकिन दुनिया की असली ईद सदियों से नहीं हुई है, और फिर मुसलमान मुसलमान बन जायें, दुनिया की ईद हो सकती है।

दुनिया असली ईद को तरस रही है। न शांति है, न एखलाक, न नैतिकता है, न इंसानियत है, न कोई बड़प्पन है, न कोई कदर है, न सेवा की भावना है, न खुदा की याद है, न सेवा की भावना है, न अल्लाह की पहचान है, कुछ नहीं है, कहां का त्योहार है, सभी त्योहार जो हैं, यह बच्चों के से खेल है। जैसे बच्चों की कोई जिम्मेदारी नहीं है, खेलते हैं, कूदते हैं, खाते हैं, पीते हैं और खुश रहते हैं, कोई चिंता नहीं, दुनिया के ऐसे देश मना रहे हैं बच्चों की तरह, लेकिन असली खुशी नहीं। जी हां, आज दुनिया को वैश्विक स्तर पर ईद की जरूरत है, वह ईद सिर्फ मुसलमानों के प्रयास से ही आ सकता है। लेकिन अफ़सोस की बात है कि मुसलमान खुद अपनी ईद का शुक्रिया सही तरीके से नहीं अदा कर पाते, और इसका सही अर्थ नहीं समझते, आप जहां रहते हैं, साबित करें कि आप कोई और कौंम हैं, अफसोस है कि इसको आंख तरस रही है।सब एक जैसे वह भी रिश्वत लेते हैं ,हम भी रिश्वत लेते हैं। वह भी ब्याज खाते हैं हम भी ब्याज खाते हैं,वह भी पैसा का भुखा और पुजारी है, हम भी हैं,यह भी आराम पंसद है वह भी आराम पंसद, उसको भी फिक्र नही कि दुनिया ,पड़ोस और समाज में क्या गुजर रही है यह भी ऐसा ही है।


मुस्लमान ऐसा नही हो सकता।अल्लाह फरमाता है तुम हकीकत में मुसलमान बनोगे तो अल्लाह से डरोगे, अल्लाह तुम्हें शान अता करेगा। दूर से पहचाने जाओगे। देखो मुस्लमान आ रहा है। सच्चे मुस्लमान को देख मिस्र पूर्ण मुस्लिम बन गया है। इराक ऐर शाम में भी मुस्लिम बन गए। भारत में ऐसा नहीं हुआ, जो लोग आए, उनमें यह आत्मा नहीं थी, जो अरबों में थी कि वे जहां भी गए, उन्होंने एक पूर्ण मुस्लिम बनाया, एक साथ खाना, एक साथ पीना, उच्च और निम्न, सब मानव हैं।
अल्लाह हम सभी मुसलमानों और पूरी मानवता के लिए इस ईद को शांति और खुशी का स्रोत बनाए।
हम ईद के इस संदेश को समझें और सभी को अपनी खुशी में शामिल करें। अल्लाह हमें ईद की सच्ची खुशियाँ दे।

हर कोई इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि दुनिया भर के मुसलमान दो साल बाद बिना किसी रोक-टोक के ईद-उल-फितर मनाएंगे। 3 मई ईद-उल-फितर का दिन होगा।