“पंखा” चलाए बिना नही चल सकता और पंख को उड़ने के लिए। इजाजत नही चाहिए होती ।
पंखे सीमित हवा के लिए होते हैं……
और पंखों के उड़ान की। कोई सीमा नहीं होती ।
पंखे को उंगलियों पर
नचाया जाता है
और पंख को उड़ने के लिए किसी इशारे की जरूरत नहीं पड़ती
पंखे किसी छत के नीचे तलाशते हैं अपना वजूद
और उड़ते पंखों के नीचे
होती है सारी दुनिया ।
वक्त है ,पंखा नहीं
पंख बनने का
छत नही , आसमान चुनने का ।


