राजेश कुमार
( बि. प्र. से.)
अपर समाहर्ता -सह -अपर जिला दण्डाधिकारी
मुजफ्फरपुर
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मोहब्बत से जी बड़ा घबराता है।
सब कुछ नया सा नज़र आता है।।
जिस्म तो जिस्म है रूह भी थर्राती है।
पर मौत के बाद भी ज़िन्दगी नज़र आती है।।
ऐ मालिक मुझे तू ख़िरद से बचा ले।
ऐ मौला मुझे तू दीवाना बना दे।।
रही है आशिकी की एक ऐसी भी चलन।
कि आशिक ही हो जाय माशूक का सनम।।
रहा है मुर्शिदो का यही पैगामे बयान।
कि आशिकी में हो जा, जस्मों – जाँ से कुर्बान।।


