
धरती
धरती!
तुम्हारा अस्तित्व है जबसे
अपने सबल कंधे पर
सम्पूर्ण संसार का भार
संभाले हुई हो
नहीं थकती तुम
न ही उबती हो तुम
आँचल में सबको समेटकर
पालन – पोषण कर रही हो
कर्तव्यों के बोझ तले
क्षन क्षन भर रही हो
तुम्हारा कोई स्वार्थ नहीं
न किसी से कोई अपेक्षा ही
गहन समर्पण और त्याग भरा है रूप तुम्हारा
पर नहीं है इसका तनिक भी दंभ तुम्हें इतनी सहनशील, सजग बनकर
संम्पूर्ण सृष्टि का भार
सहजता से स्वीकार है तुम्हें
केवल इसलिए कि स्त्री हो तुम।


