ग़ज़ल
कवित्री जयंती कुमारी की कलम से
लग गले आँसू बहाना अच्छा लगता है
हिज्र के किस्से सुनाना अच्छा लगता है
जिंदगी है खूबसूरत साथ जो तुम हो
बातों बातों में जताना अच्छा लगता है
काँच के सपने यकीनन टूटते ही हैं
फिर भी आँखों में सजाना अच्छा लगता है
तेरी मेरी बात दुनिया पर न जाहिर हो
इसलिए अब मुस्कुराना अच्छा लगता है
बंदगी फ़ितरत नहीं मेरी मगर
दर पे तेरे सर झुकाना अच्छा लगता है
बेबसी इतनी ,कि आगे हद न हो जिसकी
ऐसे में ही मौत आना अच्छा लगता है
इक दफ़ा तो देख लेते मुड़ के मेरी ओर
ऐसे क्या एकदम से जाना अच्छा लगता है?
है नहीं अच्छा कि जाओ वक़्त के जैसे
लहरों जैसे आना जाना अच्छा लगता है
