ग़ज़ल
जयंती कुमारी की ✍️✍️से
बिन तुम्हारे अधूरा आधा हूँ
मुझमें तुम पूरी मैं जरा सा हूँ
लब्ज़ से नब्ज़ तक हो तुम ही तुम
तुमको ही हर जगह उतारा हूँ
जाने क्या हो गया है ये मुझको
जी रहा पर नही मैं जिंदा हूँ
काम बस एक ही रहा अब तो
नाम तेरा मैं जपता रहता हूँ
तेरे होने से या न होने से
मैं भी बनता हूँ या बिगड़ता हूँ

