मो कमर अख्तर की रिपोर्ट
सीतामढ़ी- सीतामढ़ी चिकित्सा जगत में डा सुबोध कुमार महतो एक जाना पहचाना नाम है। उनकी गिनती जिला के प्रख्यात फिजिशयन में होने लगी है। बहुत कम समय में उन्होंने अपना यह मुकाम बनाया। 2019 में आनंदी प्रकाश हाॅस्पिटल से उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की। अपनी काबलियत के वजह से आज उनकी गिनती जिला के मशहूर चिकित्सक के रूप में होती हैं।
जिला के सोनबरसा प्रखंड के एक छोटे से गांव कचहरीपुर के निवासी है। वह प्रथम प्रयास में ही सफल हुए। डा सुबोध के बड़े भाई राम बाबू महतो कहते है कि वह बचपन से मेधावी एवं प्रतिभाशाली थे। 2005 में महाराष्ट्र के एमजीआईएमएस वर्धा से एमबीबीएस की। एबीवीआईएमएस एवं आरएमएलएच दिल्ली से मेडिसिन में एमडी किया। छः वर्षों तक दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया हाॅस्पिटल में प्रैक्टिस की। फिर अपनी धरती की लगाव ने उन्हें सीतामढ़ी खींच लाया।

डा सुबोध मरीजों में अपनी अमिट छाप छोड़ते है। साथ में समय निकाल शोध भी करते रहे है। संक्रमण रोग, इंटरनल मेडिसिन, जेनरल मेडिसिन, नेफ्रोलॉजी, संधिवातीयशास्त्र और कार्डियोलॉजी एवं फंगल रोग संक्रमण रोग पर अब तक 58 शोध कर चुके हैं, जिसमें कुछ राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुका है।
चिकेन पाक्स संबंधित शोध “रेयर काम्पलीकेशन आफ चिकेन पाक्स इन इमंयुनोकोम्पेटेंट चिल्ड्रन एक्यूट रेटिपरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम इंग्लैंड के प्रतिष्ठित जर्नल ट्रापिकल डाक्टर 2022 में प्रकाशित हुआ जो डा सुबोध, डा के गुप्ता , डा एन अग्रवाल एवं ए शेरोन का संयुक्त शोध है।

शोध में कहा गया कि चिकेन पाक्स वायरस जनित (विषाणु) संक्रामक रोग है। जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है। यह बिमारी सामान्यत 5-14 वर्षों के बच्चों में होता है। कभी कभी व्यस्कों में भी यह बिमारी लगभग एक सप्ताह में स्वतः ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ मामलों में इसके कारण गंभीर रोग जैसे न्यूमोनिया, दिमागी बुखार, एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेम सिंड्रोम, एक्यूट शाक सिंड्रोम इत्यादि देखने को मिला है। ऐसे ही दो रोगी जिसमें एक रोगी का उम्र 45 वर्ष जिनको चिकेन पाक्स पांच दिन पहले हुआ था। बाद में फेफड़ा संबंधित रोग उत्पन्न हुआ, जिसको एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कहते है। वहीं दूसरा रोगी 11 वर्षीय बच्चा था, जिनको चिकेन पाक्स तीन दिन पहले हुआ था, उन्हें भी फेफड़ा संबंधित रोग उत्पन्न हुआ। उनके एक फेफड़ा में पानी ( फ्यूरल इफ्यूलन) भर गया था। दोनों रोगी डा सुबोध महतो के उचित उपचार से पूर्णत ठीक हो गया।

दूसरा शोध ” ए रेयर साइड इफेक्ट आफ लेवासुलपिराइड गलेक्टोरिया ” इंडियन जर्नल फार्मोकोलॉजी 2021 में प्रकाशित हुआ। यह शोध डा सुबोध, एन अग्रवाल, के गुप्ता का संयुक्त रूप से था। गैस और कब्जियत होने पर अमुमन पेंटोपराजोल और लिवोसुल्पराइड का टेबलेट सेवन करने का सलाह दिया जाता है। जिसका दुष्परिणाम कुछ पुरूषों में स्तन का आकार बढ़ जाता है। ऐसे ही एक रोगी डा सुबोध के देखरेख में पूर्णतः स्वस्थ हुआ।

डा सुबोध का कहना है कि इन शोध प्रकाशनों का मुख्य उद्देश्य इन बिमारियों की जटिलता से देश विदेश के चिकित्सीय जगत में संबंधित लोगों को अवगत कराना है। उन्होंने कहा कि मुझे प्रैक्टिस के साथ शोध कार्य करने में आनंद मिलता है।

