कमरे आलम के साथ मो.अरमान अली की रिपोर्ट
सीतामढ़ी- ईद-उल-अजहा (बकरीद) एक पवित्र ऐतिहासिक पर्व है। यह त्योहार पैगम्बर हजरत इब्राहिम की सुन्नत की अदायगी का नाम है। मदरसा रहमानिया मेहसौल के पूर्व प्राचार्य मौलाना अब्दुल वदूद ने कहा कि इस पर्व का मूल संदेश यह है कि एक इंसान अपने रब की रज़ामंदी के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर सकता है।

पैंगबर हजरत इब्राहीम ने सपने में देखा कि अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। अपने सपने की बात पैंगबर इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माईल को बताई। अल्लाह की बंदगी में इस्माईल कुर्बानी देने को तैयार हो गए।पैंगबर इब्राहीम ने बेटे के गर्दन पर छुरी फेर दी। अल्लाह को यह बंदगी पसंद आई और छुरी लगने से पहले इस्माईल को हटा मेमने को रख दिया। उसके पश्चात अल्लाह की बंदगी में ईद उल अजहा के मौके पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है ।मदरसा रहमानिया मेहसौल के पूर्व अध्यक्ष मो अरमान अली ने कहा कि कुर्बानी का यह त्योहार जिल्हिज्जा की दसवीं तारीख से शुरू होता है और 11 वीं एवं 12 वीं तारीख तक चलता है। कुर्बानी दिखावे की चीज नहीं है, यह एक इबादत है, और इस्लाम में इबादत इंसान की पाक नीयत को पूरा करने का नाम है। इसलिए खुले स्थान पर कुर्बानी करने से परहेज करें, कुर्बानी के जानवरों की तस्वीर सोशल मीडिया पर डालने से बचें, साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।

मुस्लिम सिटीजंस फार एम्पावरमेंट के अध्यक्ष मो कमर अख्तर ने कहा कि त्याग और बलिदान का पर्व बकरीद आपसी भाईचारा एवं सद्भभावना के साथ मनायें। बकरीद पर्व की नींव कुर्बानी पर रखी गई है। बकरीद के नमाज के बाद कुर्बानी की जाती है जो तीन दिनों तक चलता है। कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सा में बांटा जाता है। एक हिस्सा स्वयं रखते है, वहीं दूसरा संबंधी और पड़ोसी एवं तीसरा हिस्सा गरीबों मिस्कीनों में बांटा जाता है। मौलाना अब्दुल वदूद ने बताया कि मेहसौल आजाद चौक स्थित ईदगाह में 10जुलाई को 6:45, मेहसौल पूर्वी रहमानिया मुहल्ले ईदगाह में बकरीद की नमाज 6:30 बजे अदा की जाएगी।





