कवित्री हेमा सिंह की कलम से

सावन तन झुलसाए तुम्हारे बिन परदेसी
अब तो नींद ना आए तुम्हारे बिन परदेसी…….
मंद पवन बह मन को सताए
बिजुरी अंग-अंग लहराए
सखियन रोज़ सताए तुम्हारे बिन परदेसी……
तान मजीरे झींगुर ताने,
दादुर भी लगते दीवाने,
हर पल मन अलसाए तुम्हारे बिन परदेसी……
इन हाथों पे मेंहदी रचाई,
चूड़ियों से सज गयी कलाई,
इनकी खनक तड़पाए तुम्हारे बिन परदेसी……
झूला झूलें सखी सहेली
हिलमिल करतीं खूब ठिठोली
बिरहन जी घबराए तुम्हारे बिन परदेसी…..
सपनों से बाहर तो आओ
आँखों मे आकर बस जाओ
सावन बीत न जाये तुम्हारे बिन परदेसी…..





