कवयित्री:-हेमा सिंह की कलम से…..
मजबूरियों का इजहार खामोशी,
या रुशवाइयों का डर खामोशी ?
दर्द का है नाम खामोशी ,
घुटन या चुभन खामोशी ?
सूनेपन का एहसास खामोशी,
इन्कार या इजहार खामोशी ?
शर्म का है नाम खामोशी,
या संकोच ही है खामोशी?
पश्चताप करना खामोशी ,
या गर्व का नाम खामोशी ?
बडे़पन की पहचान खामोशी ,
या सहनशक्ति खामोशी ?
टूटे न रिश्तें नाजूक भी,
करे जतन वो भी खामोशी !
दर्द हृदय के पार हो चले,
अश्कों से सिंचित खामोशी !
क्रोध का झोंका जहर घुला तो,
रख शीतल मदमस्त खामोशी !
प्यार असीम चुपचाप हो पले,
लफ्ज नहीं तब बस खामोशी!
सबके वश की बात नहीं है
बड़े काम की ये खामोशी !






