मुज़फ़्फ़रपुर से स्वर्णलता के साथ जुही राज

मुज़फ्फरपुर-अमर शहीद खुदीराम बोस के स्मारक स्थल पर आज शहीद खुदी राम बोस और प्रफुल चाकी को फूलों का माला पहनाकर जिलाधिकारी मुजफ्फरपुर प्रणव कुमार ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया , इस मौके पर शहीद खुदीराम बोस के पश्चिम बंगाल मिदनापुर से आय अतिथियों के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानियों और शहर के बुद्धिजीवियों और प्रशानिक पदाधिकारियों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें नमन किया ।

मुजफ्फरपुर में यह वही जगह है , जहां से 30 अप्रैल, 1908 को जिला जज के बंगले के बाहर खुदीराम और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने जज डगलस किंग्सफोर्ड पर बम फेंका था। यहां सड़क किनारे लगी शहीद प्रतिमाएं उनके चित्रों से मेल नहीं खातीं। इस उपेक्षित-से स्मारक को देखकर हम आहत हैं।

सब तरफ उदासी और खामोशी का साम्राज्य। चाकी की प्रतिमा के नीचे उनका परिचय भी अंकित नहीं है। इस पर लगी पट्टिका शायद खंडित होकर टूट-बिखर गई हो। एक समय किंग्सफोर्ड बंगाल में अदालत का हाकिम था, जहां उसने अनेक देशभक्तों को कड़ी सजा दी थीं। क्रांतिकारियों ने तय किया कि किंग्स से इसका बदला लिया जाए, जिसकी जिम्मेदारी खुदीराम और चाकी जैसे दो किशोर विप्लवियों को सौंपी गई।

इस बीच किंग्स का तबादला मुजफ्फरपुर हो गया, पर खुदीराम ने हिम्मत नहीं हारी। वह मुजफ्फरपुर में मोतीझील की धर्मशाला में ठहरकर किंग्स के आने-जाने का पता लगाने लगे। यूरोपियन क्लब (अब मुजफ्फरपुर क्लब) का रास्ता उन्होंने देख लिया। दोनों युवाओं ने गाड़ी के रंग की शिनाख्त कर उस पर बम फेंक दिया, जिसमें किंग्स न होकर एक महिला श्रीमती कनेडी और उनकी बेटी मारी गईं। शराब के नशे में धुत किंग्सफोर्ड उस दिन क्लब में ही पड़ा था।

पुलिस के दो सिपाहियों ने दूर तक दोनों को पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन वे विफल रहे। दोनों क्रांतिकारी 25 किलोमीटर दूर एक जगह कुछ चना-चबेना लेने के लिए ठहरे कि किंग्स के बच जाने का उन्हें पता लगा। एकाएक उनके मुंह से निकल पड़ा-‘अरे, डगलस बच गया।’ लोगों को उन पर संदेह हुआ। वहां मौजूद सिपाही पकड़ने दौड़े। खुदीराम उनके हाथ आ गए, लेकिन चाकी गोलियां चलाते हुए भाग निकले। वह समस्तीपुर पहुंचे, जहां एक सज्जन ने टिकट लेकर उन्हें ट्रेन में बैठा दिया था ,


